मंगलवार, 2 जून 2009

गाओ ऐसा गान....

गाओ ऐसा गान कि मन की व्यथा रिक्त हो जाए।
पीड़ित प्राण पखेरू को आनंद अमित हो जाए ॥ गाओ ऐसा गान....
पंजों में नाखून नहीं तो मन में संचित बल है ,
आज भेड़ियों की मांदों में रक्षित सारा बल है ,
लगता है कि दिशाहीन होती जाती राहें हैं ,
अपने शौर्य पराक्रम कि तो शक्तिहीन बाहें हैं ।

धर्म तराजू पर तौलेंगे हम एक दिन भुजबल को ,
और पुकारेंगे अतीत से प्राप्त हुए संबल को ,
विजय पराजय होगी किसकी देखा जाएगा ,
विष दंत चुभोनेवाले को भी रोका जाएगा ।

आओ मुट्ठी में भर लें हम ये सारा आकाश ,
फैले जग में फिर भारत का तेजस् पुंज -प्रकाश ,
पंखविहीन हुए तो क्या है , हम उड़ सकते हैं ,
नए क्षितिज और नयी दिशाएं भी गढ़ सकते हैं ।

दुर्बल को दे शक्ति नयी हम नया समाज रचेंगे ,
जाती पाती और भेद भाव से निश्चय सभी बचेंगे ,
विकल आर्तजन को देंगे हम एक नया विश्वास ,
सपनों को हो जाएगा , सच होने का आभास ।
पीड़ा के परिदृश्य बदलते जीवन के साथी हैं ,
आतंक घोर फैलानेवाले कायर हैं , पापी हैं,
चिंगारी हो जहाँ कहीं उसे समेट लाना है ,

जन गण मन का संदेश अमर हमको फैलाना है ।।
त्राहिमाम करती जनता भी कभी मुक्त मन गाये ,
गाओ ऐसा गान कि मन की व्यथा रिक्त हो जाए ।।

1 टिप्पणी:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

जन गण मन का संदेश अमर हमको फैलाना है ।।
त्राहिमाम करती जनता भी कभी मुक्त मन गाये ,
गाओ ऐसा गान कि मन की व्यथा रिक्त हो जाए ।।
बहुत ही सुन्दर रचना. बधाई.