सोमवार, 30 अगस्त 2010

'मेरी आवाज़ सुनो...'

मित्रों !

तुलसीदासजी की पंक्ति है :

'छिति जल पावक गगन समीरा...' से रचित जो प्राण-तत्व है, वही तो मैं हूँ, आप हैं, हम सभी हैं ! इसी भाव-भूमि का अधिष्ठान बनकर जो कविता मैंने लिखी थी और जिसे मैंने ब्लॉग पर पहले कभी पोस्ट भी किया था, उसे मैंने अपनी आवाज़ में स्वरांकित किया है ! चाहता हूँ, आप भी उसे सुनें ! इसी कामना से कविता का ऑडियो क्लिप यहाँ रख रहा हूँ ! --

कृपया आप इसे सुनने की पीड़ा उठायें और पीत-प्रसन्न हों ! साभिवादन--आनंदवर्धन.


4 टिप्‍पणियां:

विवेक सिंह ने कहा…

बहुत बढ़िया !

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह क्या बात है! देर से ही सही सस्वर पाठ सुनने को तो मिला. मौसमानुकूल, सुन्दर कविता, शानदार आवाज़ में, सुनने का मज़ा दोगुना हो गया. आभार.

अर्कजेश ने कहा…

आनंद आया आपसे सुनकर कविता । जारी रहिए ।

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

ओझा जी,आप का काव्य पाठ भी सुना और कविताएँ भी सुनीं.मर्मस्पर्शी हैं.अच्छी लगीं.

विजय माथुर
www.krantiswar.blogspot.com